प्राण-मुद्रा एक आधारभूत शक्ति(योगिक और ज्योतिषीय अनुभव)
हमारे सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में प्राण तत्व(आक्सीजन) बिखरा हुआ है,इस तत्व पर ही हमारे प्राण टिके हैं जिसे हम कर्मबल से प्राप्त कर सकते हैं|
गीता में भी भगवान् श्री कृष्ण ने अर्जुन को सम्बोधित करते हुए यह ज्ञान दिया कि अर्जुन कर्म कर फल की चिंता छोड़ दे अर्थार्थ फल मैँ तुझे दूंगा ही| योग शास्त्र की इस प्राण मुद्रा द्वारा हम कर्म कर प्राण तत्व को संतुलित कर फल प्राप्त कर सकते हैं और जन्म-कुंडली की मारक दशाओं से बच भी सकते हैं |
| प्राण मुद्रा को करने कि विधि |
अपने हाथ के अंगूठे द्वारा,कनिष्टिका(सबसे छोटी अंगुली)और अनामिका(रिंग-फिंगर) अँगुलियों पर हल्का सा अंगूठे का दबाव देना ही प्राण मुद्रा है|
| प्राण-मुद्रा को करने का समय और सावधानियां |
१. खाना खाने के ३० मिनट बाद या ख़ाली पेट|
२. ८ मिनट से लेकर ४८ मिनट तक इस मुद्रा को किया जा सकता है|
३. बैठ कर और चलते-फिरते भी इस मुद्रा को किया सकते है |
४. बहुत ज्यादा देर तक भी प्राण-मुद्रा को नहीं करना जब शरीर में प्राण स्थिर लगें तो इसे करना कम कर दें|
| प्राण-मुद्रा के लाभ |
१. प्राण-मुद्रा को करने से बुध गृह अच्छा होता है शरीर में इस मुद्रा को कर ऑक्सीजन की मात्रा को संतुलित किया जा सकता है|
२. लम्बे उपवास से आई कमज़ोरी को इस मुद्रा के अभयास से अति-शीघ्र ही दूर किया जा सकता है |
३. आँखों के लिए यह मुद्रा वरदान है जिन महानुभावों की नज़र कमज़ोर है या जन्म-कुंडली का २ और १२ भाव कमज़ोर है वो इसे कर अच्छे परिणाम प्राप्त कर सकते है |
४. प्राण-मुद्रा को करके शरीर में विटामिन्स की कमी को भी पूरा किया जा सकता है |
५. कुंडली में ६,८,१२, भावों से बने कुदोषों को इस मुद्रा द्वार ठीक किया जा सकता है,पर उसके लिए अच्छे ज्योतिष की सलाह लेना रमावश्यक है|
६. इस मुद्रा को करने से शनि ग्रह को भी शांत किया जा सकता है | शनि की साढ़े साती मे इस मुद्रा का प्रयोग अच्छे परिणाम देता है |
प्राण-मुद्रा के और भी कई लाभ हैँ उन लाभों के बारे में कभी और दिन चर्चा करेंगे आप इसे कर शरीर और प्राणो सम्बंधित कई दोषों को दूर कर सकते हैँ |